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गतांक से जारी)
त्रिमुखी रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष अग्निस्वरूप माना गया है। सत्व, रज और तम- इन तीनों यानी त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप यह भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी, कमजोरी नहीं रहती। व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही कार्यसिद्धी होती है। धारक अग्नि के समान तेजस्वी हो जाता है। घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष : यह ब्रह्म का प्रतिनिधि है। यह शिक्षा में सफलता देता है। जिसकी बुद्धि मंद हो, वाक् शक्ति कमजोर हो तथा स्मरण शक्ति मंद हो उसके लिए यह रुद्राक्ष कल्पतरु के समान है। इसके धारण करने से शिक्षा आदि में असाधारण सफलता मिलती है। बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति तथा सभी प्रकार के मानसिक रोग दूर होते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
पंचमुखी रुद्राक्ष : यह भगवान शंकर का प्रतिनिधि है। यह कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। शत्रुनाश के लिए पूर्णतया फलदायी है। इसके धारण करने पर साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का डर नहीं रहता। मानसिक शांति और प्रफुल्लता के लिए भी इसका उपयोग किया होता है। यह उन्नतिदायक माना गया है। सब पापों को नष्ट करने वाला तथा उत्तरोत्तर प्रगति करने में सहायक है।
षष्ठमुखी रुदाक्ष : यह षडानन कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने से खोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है। कार्यों में पूर्ण तथा व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है। इसे धारण करने से चर्मरोग, हृदय की दुर्बलता तथा नेत्ररोग दूर होते हैं। जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता। हिस्टीरिया, प्रदर स्त्रियों से संबंधित रोग दूर करने में उत्तम होता है। (क्रमश:)
पूर्ण सफलतादायक है रुद्राक्ष- भाग 2
Reviewed by
Upendra Agarwal
on
फ़रवरी 12, 2011
Rating:
5
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