परेशानी का कारण पूर्वजन्म के दोष तो नहीं

परेशानी का कारण पूर्वजन्म के दोष तो नहीं (वैदिक ज्योतिष के अनुसार)

 जन्म पत्रिका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति आत्माओं का सम्बन्ध पूर्व कर्म के कर्मो से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाती है -

1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशीर्वाद या दोष दर्शाता है। अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति कों अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।

2. दूसरे स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।

3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं।

4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है। शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं। इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करना चाहिए।

8. आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है। उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है।

9. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा। ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है।

10. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रद्धा रखता है। दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त। दुष्टध्प्रवृत्ति के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं ।

11. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्र मंत्र गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है। मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है। राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए।

12. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है। ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है।

अब शनि का पूर्वजों से सम्बन्ध-
1. शनि का लग्न या प्रथम स्थान पर होना दर्शाता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं जड़ी-बुटी, गूढ़विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसे व्यक्ति को अच्छी अदृश्य आत्माएं सहायता करती है। इनका बचपन बीमारी या आर्थिक परेशानीपूर्ण रहता है। ये ऐसे मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेत आत्माओं का निवास रहता हैं। उनकी पूजा अर्चना करने से लाभ मिता हैं।

2. शनि दूसरे स्थान पर हो तो माना जाता है। कि ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने या कष्ट देने से उनकी बददुआ के कारण आर्थिक, शारीरिक परिवारिक परेशानियां भोगता है। राहु का सम्बन्ध होने पर निद्रारोग, डऱावने स्वप्न आते हैं या किसी प्रेत आत्मा की छाया उदृश्य रुप से प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान रहते हैं।

3. शनि या राहु तीसरे या छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती है। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीडि़त पाये जाते हैं।

4. चौथे स्थान पर शनि या राहु पूर्वजों का सर्पयोनी में होना दर्शाता है। सर्प की आकृति या सर्प से डर लगता है। इन्हें जानवर या सर्प की सेवा करने से लाभ होता है। पेट सम्बन्धी बीमारी के इलाज से सफलता मिलती है।

5. पॉचवें स्थान पर शनि या राहु की उपस्थिति पूर्व जन्म में किसी को घातक हथियार से तकलीफ पहुचाने के कारण मानी जाती है। इन्हें सन्तान संबंधी कष्ट उठाने पड़ते हैं। पेट की बीमारी, संतान देर से होना इत्यादि परेशानियॉ रहती हैं।

6. शनि या राहु छठे स्थान पर हो तो अदृश्य आत्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद करती है। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य, घर जमीन के नीचे क्या है, ऐसे कार्य में ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीडि़त पाये जाते हैं।

7. सातवें स्थान पर शनि या राहू होने पर पूर्व जन्म संबंधी दोष के कारण ऑख, शारीरिक कष्ट, परिवारिक सुख में कमी महसूस करते हैं । धार्मिक प्रवृत्ति और अपने इष्ट की पूजा करने से लाभ होता है।

8. आठवें स्थान पर शनि या राहु दर्शाता है कि पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति पर तंत्रा-मंत्रा का गलत उपयोग करने से अकारण भय से ग्रसित रहता हैं। इन्हें सर्प चोर मुर्दों से भय बना रहता हैं। इन्हें दूध का दान करने से लाभ होता है।

9. नवें स्थान पर शनि पूर्व जन्म में दूसरे व्यक्तियों की उन्नति में बाधा पहुचाने का दोष दर्शाता है। अतः ऐसे व्यक्ति नौकरी में विशेष उन्नति नहीं कर पाते हैं।

12. शनि का बारहवें स्थान पर होना सर्प के आशीर्वाद या दोष के कारण आर्थिक लाभ या नुकसान होता है। ऐसे व्यक्ति ने सर्पाकार चांदी की अंगुठी धारण करनी चाहिए ऐसे योग सर्प की पूजा करने से लाभान्वित होते हैं। भगवान शंकर पर दूध पानी चढ़ाने से भी लाभ मिलता है।

राहु शनि युति- जन्म पत्रिका के किसी भी घर में राहु और शनि की युति है ऐसा व्यक्ति बाहर की हवाओं से पीडित रहता है। इनके शरीर में हमेंशा भारीपन रहता है, पूजा अर्चना के वक्त अबासी आना आलसी प्रवृत्ती, क्रोधी होने से दोष पाया जाते हैं।

कुंडली के पंचम भाव के स्वामी ग्रह से जातक के पूर्वजन्म के निवास का पता चलता है.
पूर्नजन्म में जातक की दिशा : जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित राशि के अनुसार जातक के पूर्वजन्म की दिशा का ज्ञान होता है.
पूर्नजन्म में जातक की जाति : जन्म कुंडली में पंचमेश ग्रह की जो जाति है, वही पूर्व जन्म में जातक की जाति होती है.


 मृत्युपरांत गति--

मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं. इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है. मृत्यु के बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है.

यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है.

यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो, द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से दृष्टि होने पर मोक्ष प्राप्ति का योग होता है.

यदि बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो, तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है.

जन्म कुंडली में गुरु और केतु का संबंध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.


पूर्वजन्म योनि विचार-

1- जिस व्यक्ति की कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्व राशि के हों तो उस व्यक्ति ने उत्तम योनि भोगकर यहां जन्म लिया है, ऐसा ज्योतिषियों का मानना है।

2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में सद्विवेकी वणिक था, ऐसा मानना चाहिए।

3- लग्नस्थ गुरु इस बात का सूचक है कि जन्म लेने वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था। यदि जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था, ऐसा मानना चाहिए।

4- यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करना वाला था, ऐसा मानना चाहिए।

5- लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था व जीवन के सभी सुख भोगने वाला था, ऐसा समझना चाहिए।

6- लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे भाव में शनि इस बात का सूचक है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था।

7- यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई, ऐसा ज्योतिषियों का मत है।

8- चार या इससे अधिक ग्रह जन्म कुंडली में नीच राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी,ऐसा मानना चाहिए।

9- कुंडली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था।

10- सप्तम भाव, छठे भाव या दशम भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीडि़त रहते थे।

11- गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या पंचम या नवम भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था, ऐसा मानना चाहिए।

12- कुंडली के ग्यारहवे भाव में सूर्य, पांचवे में गुरु तथा बारहवें में शुक्र इस बात का सूचक है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में धर्मात्मा प्रवृत्ति का तथा लोगों की मदद करने वाला था


मृत्यु उपरांत गति विचार- 

मृत्यु के बाद आत्मा की क्या गति होगी या वह पुन: किस रूप में जन्म लेगी, इसके बारे में
भी जन्म कुंडली देखकर जाना जा सकता है। आगे इसी से संबंधित कुछ योग बताए जा रहे हैं-

1. कुंडली में कहीं पर भी यदि कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है।

2. लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तथा कोई पापग्रह उसे न देखते हों तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है।

3. अष्टमस्थ राहु जातक को पुण्यात्मा बना देता है तथा मरने के बाद वह राजकुल में जन्म लेता है, ऐसा विद्वानों का कथन है।

4. अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तथा लग्नस्थ मंगल पर नीच शनि की दृष्टि हो तो जातक रौरव नरक भोगता है।

5. अष्टमस्थ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक मृत्यु के बाद वैश्य कुल में जन्म लेता है।

6. अष्टम भाव पर मंगल और शनि, इन दोनों ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है।

7.अष्टम भाव पर शुभ अथवा अशुभ किसी भी प्रकार के ग्रह की दृष्टि न हो और न अष्टम भाव में कोई ग्रह स्थित हो तो जातक ब्रह्मलोक प्राप्त करता है।

8. लग्न में गुरु-चंद्र, चतुर्थ भाव में तुला का शनि एवं सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में कीर्ति अर्जित करता हुआ मृत्यु उपरांत ब्रह्मलीन होता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

9. लग्न में उच्च का गुरु चंद्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टम स्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक जीवन में सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है तथा प्रबल पुण्यात्मा एवं मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त करता है।

10. अष्टम भाव को शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुंभ राशि हो तो जातक योगिराज पद प्राप्त करता है तथा मृत्यु के बाद विष्णु लोक प्राप्त करता है।

11. यदि जन्म कुंडली में चार ग्रह उच्च के हों तो जातक निश्चय ही श्रेष्ठ मृत्यु का वरण करता है।

12. ग्यारहवे भाव में सूर्य-बुध हों, नवम भाव में शनि तथा अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है।

विशेष योग-

1- बारहवां भाव शनि, राहु या केतु से युक्त हो फिर अष्टमेश (कुंडली के आठवें भाव का स्वामी) से युक्त हो अथवा षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) से दृष्ट हो तो मरने के बाद अनेक नरक भोगने पड़ेंगे, ऐसा समझना चाहिए।

2. गुरु लग्न में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, कन्या राशि का चंद्रमा हो एवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के बाद परमपद प्राप्त करता है।

3. अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चंद्र, ये तीनों ग्रह देखते हों तो जातक मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त करता है, ऐसा पूर्व ज्योतिष मनिषीयों का मत है।

!!! शुभमस्तु !!! 

Prabhu Darshan- 100 से अधिक आरतीयाँचालीसायें, दैनिक नित्य कर्म विधि जैसे- प्रातः स्मरण मंत्र, शौच विधि, दातुन विधि, स्नान विधि, दैनिक पूजा विधि, त्यौहार पूजन विधि आदि, आराध्य देवी-देवतओ की स्तुति, मंत्र और पूजा विधि, सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती, गीता का सार, व्रत कथायें एवं व्रत विधि, हिंदू पंचांग पर आधारित तिथियों, व्रत-त्योहारों जैसे हिंदू धर्म-कर्म की जानकारियों के लिए अभी डाउनलोड करें प्रभु दर्शन ऐप।  
परेशानी का कारण पूर्वजन्म के दोष तो नहीं परेशानी का कारण पूर्वजन्म के दोष तो नहीं Reviewed by Upendra Agarwal on सितंबर 07, 2018 Rating: 5

1 टिप्पणी:

loading...
Blogger द्वारा संचालित.