हमने ऐसी हजारों कुंडलियों का निचोड़ वर्षों में जाना है। सूर्य शनि का समसप्तक योग लग्न सप्तम योग कुटुम्ब से वैचारिक मतभेद का कारण बनता है। स्वास्थ्य में भी गड़बड़ रहती है। वाणी में संयम न रख पाने की वजह से कई बनते कार्य बिगड़ सकते हैं। धन का संग्रह भी नहीं हो पाता है।
तृतीय नवम भाव से बनने वाला समसप्तक योग भाइयों, मित्रों, पार्टनरशिप में हानि का कारण बनता है। निरन्तर भाग्य में भी बाधाएँ आती है। धर्म-कर्म में आस्था नहीं रहती।
चतुर्थ भाव व दशमभाव में बनने वाला समसप्तक योग पिता से दूर करा देता है। पिता पुत्र एक साथ नहीं रह पाते। किसी भी कारण से पुत्र की दूरी पिता से बनी रहती है। ऐसे जातक को अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहिए, नहीं तो पिता या पुत्र में से कोई एक ही रहता है।
पंचम एकादश से बनने वाला समसप्तक योग विद्या में बाधा का कारण बनता है। संतान से वैचारिक मतभेद बने रहते हैं। संतान अलग हो जाती है। आर्धिक मामलों में उतार-चढ़ाव बना रहता है।
षष्ट-एकादश से बनने वाला सूर्य शनि का समसप्तक योग से घर ठीक नहीं रहता। नेत्र विकार हो सकते हैं। शत्रु नष्ट होते हैं। कोर्ट कचहरी आदि में सफलता मिलती है। इस प्रकार किसी के गृह योग हों तो उन्हें कुंडली के हिसाब से उपाय कराने पर दोष कम किया जा सकता है। हमारे सामने श्रीराम-दशरथजी का उदाहरण है, वे कभी एक साथ अधिक समय नहीं रहे। किसी न किसी कारण अलग होना पड़ा।
सूर्य-शनि की दृष्टि बढ़ाए वैचारिक मतभेद
Reviewed by Upendra Agarwal
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दिसंबर 19, 2010
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