विश्वास और अन्धविश्वास

हाल ही में एक लेख ने ध्यान आकर्षित किया, “Supersitions can make you a better performer”, कोलोंग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया। कुछ व्यक्तियों को दोGroups में बांटा गया और उन्हें काम सौंपा गया। एक Groups के व्यक्तियों को उनका कोई Lucky Charm साथ लाने को कहा गया। आश्चर्यजनक रूप से उन लोगों का Performance ज्यादा बेहतर आया जो अपने साथ अपना Lucky Charm ले कर आये थे। उन्होंने अपना कार्य औरों की अपेक्षा जल्दी पूरा किया और अधिक आत्मविश्वास का परिचय दिया।
इस पूरे लेख में सिर्फ एक संशोधन की आवश्यकता मुझे महसूस हुई और वह ‘Superstion’ की जगह 'Faith' शब्द का प्रयोग। विश्वास और अंधविश्वास में बहुत अंतर होता है। जो लोग अपने साथ अपना 'Lucky Charm' लेकर आये थे वो दरअसल अपने साथ एक विश्वास लेकर आये थे। इसी विश्वास की प्रेरणा के कारण वो औरों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा कार्य कर पाये।

विश्वास और अंधविश्वास वैसे तो विश्वास और अंधविश्वास को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है परन्तु कम शब्दों में कहा जा सकता है जहां विश्वास ताकत है वहीं अंधविश्वास कमजोरी। किसी विश्वास के सहारे कठिन से कठिन परिस्थिति से भी बाहर आया जा सकता है। विश्वास बहुत ब़डा आसरा है। विश्वास से जु़डी एक कथा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। एक गाँव में भयानक अकाल प़डा और सभी गाँववासियों ने मिलकर बरसात के लिए एक हवन रखा। सब लोग उस स्थल पर पहुँचे और सिर्फ एक नन्हें से बच्चो के हाथ में छाता था। यह वह विश्वास है जिसने इन्द्र देव को मजबूर किया कि वो उस हवन को स्वीकारें और सफल बनाएं।

अंधविश्वास पैरों में बेç़डया डाल देता है और आगे बढ़ने की गति को अवरूद्ध कर देता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हम विश्वास और अंधविश्वास के बारीक भेद को समझ नहीं पाते हैं। ज्योतिष पर विश्वास करने वाले लोगों को कई बार अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। यहां तक कि पूजा-पाठ को भी कई लोग अंधविश्वास का नाम दे देते हैं। यह शायद हमारी समझ का ही फेर है। जब हमारे बुजुर्गो ने कहा कि ग्रहण के समय बाहर मत निकलो, आपको नुकसान हो सकता है तो हमने ब़डी शान से कहा कि हम इस अंधविश्वास को नहीं मानते। यही बात जब वैज्ञानिकों ने कही तो हमने ultraviolate rays की दुहाई देते हुए ग्रहण के समय बाहर न निकलने का तर्क देना शुरू कर दिया। जब किसी सास ने अपनी गर्भवती बहू को ग्रहण के समय बाहर न निकलने की, ग्रहण के दौरान चाकू का प्रयोग न करने और बिलकुल सीधे लेटे रहने की सलाह दी तो बहूरानी ने उन्हें दकियानूसी विचारों वाला करार दिया। आज वैज्ञानिक स्पष्ट कर चुके हैं कि यह बुजुर्ग सासें बिलकुल पते की बात कहती हैं। जो बातें हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने कहीं वो नि:स्वार्थ भाव से मानव हित के लिए कही गई थीं। उनमें अंधविश्वास जैसा कुछ नहीं था। वो वैज्ञानिक आधारवाली सर्वथा सत्य बातें थीं। अंधविश्वास का जन्म हमेशा स्वार्थ की कोख से ही होता है, इसलिए वो आधारहीन होता है। दक्षिण भारत के एक गांव में ऎसी मान्यता है कि ग्रहण के समय यदि अपंग बच्चाों को ध़्ाड तक मिट्टी में ग़ाड दिया जाये तो वो ठीक हो जाते हैं। यह अंधविश्वास की श्रेणी में आता है, क्योंकि किसी भी शास्त्र में ऎसा कोई विवरण नहीं है। दुर्भाग्य से ऎसे अंधविश्वासों को ज्योतिष से जो़ड दिया जाता है और फिर लोग बिना कोई विश्लेषण किये ज्योतिष को अंधविश्वास की श्रेणी में ले आते हैं।

ज्योतिष और आयुर्वेद सदा एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। दोनों ने ही रोग का आधार कफ, पित्त, वात को माना है। ज्योतिष में रोग का आधार पूर्व जन्म के कर्मो को माना गया है। ईलाज के रूप में दोनों ही दवाईयों आदि विद्याओं की सलाह देते हैं। ऎसे में यदि कोई ढोंगी चमत्कार से बीमारियों को ठीक करने का दावा करता है और भी़ड उसके पास उम़डती है तो यह अंधविश्वास है। हाल ही में एक खबर पढ़ी कि एक तांत्रिक ने घर में छुपे हुए खजाने का हवाला देते हुए एक परिवार से लाखों रूपये लूट लिए और उनकी पुत्री का शोषण किया। यह लालच से जन्मा अंधविश्वास है। मुझे आश्चर्य होता है कि पढ़े-लिखे लोग ऎसे लोगों का शिकार बन जाते हैं और उनसे अधिक पढ़े-लिखे लोग मूल कारण को जाने बिना ज्योतिष को इन सब का जिम्मेदार मानते हुए अंधविश्वास की श्रेणी में लाकर ख़डा कर देते हैं।

जो लोग ज्योतिष को अंधविश्वास की श्रेणी में रखते हैं और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए हर संभव तर्क देते हैं, यदि उनसे पूछा जाये कि ज्योतिष का आधार क्या है, तो वो नहीं बता पायेंगे क्योंकि वो जानते ही नहीं हैं कि जिस ज्योतिष को वे अंधविश्वास और भाग्यवादी कह रहे हैं, उसका आधार ही कर्म है। कुछ साल पहले तक मुझे ऎसे लोगों पर क्रोध आता था, पर अब उन पर तरस आता है। हमारे वेद और पुराण विज्ञान के सूत्रों से भरे हुए हैं।

ईश्वर और आत्मविश्वास पश्चिम जगत के वैज्ञानिकों ने तरह-तरह की रिचर्स करके यह सिद्ध किया कि जो लोग ईश्वर पर विश्वास रखते हैं उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है और वे आत्महत्या जैसे घृणित कार्य को नहीं करते हैं। ये बात भारतीय परिवेश में हम सदियों से जानते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने हर उस महत्वपूर्ण विषय को धर्म और ईश्वर से जो़ड दिया जो मानव हित के थे। भारतीय परिवारों में जब छोटे से बच्चो को भी कोई गलत कार्य करने से रोका जाता है तो यह समझाया जाता है कि कोई और देखे ना देखे ईश्वर हर पल तुम्हें देखता है। यदि उसके संस्कारों में मिलावट ना आए तो वह जीवनपर्यत गलत कार्य करने से बचता है। तो फिर ईश्वर पर यकीन करना अन्धविश्वास कैसे हो सकता हैक् कोई माने या ना माने परंतु यह सबसे ब़डा सच है कि बहुत सी बातें हमारे हाथ में हैं ही नहीं। तो फिर उनका संचालन कौन कर रहा हैक् डॉक्टर भी अंतिम परिणामों के लिए ईश्वर पर ही भरोसा करता है और हर डॉक्टर ने चमत्कारों को अनुभव किया है, जिसका कोई जवाब मेडिकल साईन्स के पास नहीं है।

ईश्वर पर विश्वास करने वाला अपने सारे प्रयास करता है और एक सीमा के बाद उस पर छो़डकर निश्चिंत हो जाता है इसलिए ईश्वर पर विश्वास करने वाले लोग ह्वदयघात के कम शिकार होते हैं।
Reviewed by Upendra Agarwal on जुलाई 30, 2010 Rating: 5

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