शुक्र
शुक्र भोग विलास का ग्रह ज़रूर है लेकिन ये अध्यात्म और मोक्ष का ग्रह भी है। एक बात यहां गौर करने वाली है कि कुंडली का 12वां भाव शारीरिक संबंध भी दिखाता है और यही भाव मोक्ष भी दिखाता है। साथ साथ इसके बाद कुंडली समाप्त। यानि नया सिरा आ जाता है कुंडली का। मतलब पहला भाव।
शुक्र का ही है ये 12 भाव कुंडली में, मतलब शुक्र है तो प्रेम भी है। प्रेम है तो दो शरीरों का आत्मिक मिलन भी है। आत्मिक मिलन भी है तो साथ साथ मोक्ष भी है। यानि कुछ हद एक बात तो साफ है कि "भोग से योग" की तरफ ले जाता है ये ग्रह। सभी ने एक किताब पढी होगी "संभोग से समाधि"। यहां एक बात ज़रूर ध्यान रखें कि संभोग और वासना में जमीन आसमान का फर्क है और ये फर्क जिसकी समझ में आ गया। उसके लिए "भोग से योग" आसान हो जाता है। (ये एक लंबा टापिक है इसपर फिर कभी चर्चा की जाएगी)
लेकिन समस्या क्या है कि आज की पश्चिमी अवधारणा (सेक्स विचार) और प्राचीन संभोग की अवधारणा में जमीन तथा आसमान का फ़र्क है। दरअसल हिंदू धर्मग्रंथों में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। वर्तमान में मानव भोग-विलासिता और संभोग को ही जीवन माने बैठा है। शायद इसी के चलते उसका पारिवारिक, सामाजिक जीवन तो खत्म होता ही है साथ ही वह रोगों का शिकार भी बन जाता है। वह जीवन का भरपूर लुफ्त नहीं उठा पाता।
स्थिति तो ये हो गयी है साहब कि हम प्रेम और संभोग को एक ही तराजू में रखने लगे हैं। और इसी कारण हम कृष्ण के साथ तो राधा की फोटो तो अपने घर में लगा सकते हैं जो कि कृष्ण कि पत्नी नहीं प्रेमिका थी। लेकिन हम अपनी प्रेमिका के साथ अपनी फोटो अपने ही पर्स में नहीं रख सकते। डर लगता है कि अगर किसी ने देख लिया तो हंगामा हो जायेगा। और ये बात जब किसी व्यक्ति से कहो तो वो एक ही बात कहता है कि उनका प्रेम तो पवित्र था। आज कल प्रेम में वासना आ गयी है।
लेकिन सवाल अब ये है कि आखिर प्रेम में वासना आई कहाँ से ? जब कृष्ण ने प्रेम को पवित्र कर के छोड़ा था तो आगे के समाज ने उस पवित्र प्रेम को आगे क्यूँ नहीं बढाया? ज़रूरत है कि शुक्र को समझा जाए और उसी अनुसार जीवन में बढा जाए।
शुक्र भोग विलास का ग्रह ज़रूर है लेकिन ये अध्यात्म और मोक्ष का ग्रह भी है
Reviewed by Upendra Agarwal
on
सितंबर 08, 2018
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