गुरु-राहु का चांडाल योग शुभ भी होता है

"गुरु-राहु का चांडाल योग शुभ भी होता है"

गुरु और राहु की किसी राशि में युति होने पर चांडाल नामक योग बनता है। इसे अशुभ मानने की आम धारणा है, किन्तु ये किसी विशेष स्थिति में ही अशुभ है अन्यथा ये अत्यधिक शुभ परिणाम भी देते है। इनका शुभत्व एवं अशुभत्व इनमे परस्पर दूरिया और दृष्टियोग में निहित है, यदि किसी भी राशि में गुरु के अंश कम व राहु के अंश ज्यादा है तो परिणाम शुभ ही मिलेगा। 

अशुभ परिणाम तब होंगे जब राहु के अंश कम हो और गुरु के अंश ज़्यादा हो उदहारण, मीन राशि में गुरु 10अंश पर हो ओर राहु 20अंश पर हो तो परिणाम शुभ ही होगा कारण अभी गुरु को ग्रहण नहीं लगा है और वो अपने प्रबल शत्रु से दृष्टियोग बना कर युद्ध के लिए अग्रसर है तो उसके गुण ओर तेज अपनी चरम स्थिति में होते है उसकी शक्ति सामान्य से अधिक होती है और उसके पृथ्वी पर शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है।

 इस समय जन्म लेने वाले महान संत, ज्ञानी, विद्वान, महापंडित, राजभवन, सभाभवन में बैठने वाले व अच्छे शिक्षाविद, न्यायाधीश, नामी चिकित्सक, कुशल बैंकर, धनवान, ट्रस्टी, मेडिकल साइंस में खोज करने वाले, बड़ी ज़िम्मेदारी निभाने वाले, संपादक, कानून के ज्ञाता, मैनेजमेंट में दक्ष, विवेकी, प्रज्ञावान, मतलब गुरु के सभी शुभ प्रभाव प्रचुर मात्रा में मिलते है। इसमें मीन राशि सिर्फ उदहारण के लिए ली गयी है। ये स्थिति किसी भी राशि में हो तो परिणाम शुभ ही होंगे, अपवाद को छोड़ दे।

 अशुभ परिणाम तब होंगे जब किसी राशि में गुरु 20अंश का हो और राहु 1-19अंश तक यानि गुरु के अंश से कम हो तो अशुभ परिणाम होगा। पहली स्थिति में अभी ग्रहण नहीं लगा है और दूसरी स्थिति में ग्रहण लग चुका है इसमें अज्ञानी, फूहड़, मूर्खतापूर्ण कार्य करने वाला, अविवेकी, ज़िम्मेदारी से भागने वाला, तामसिक वृति वाला, गबन करने वाला, दिवालिया, मतलब गुरु के शुभ गुण न्यूनतम हो जाते है। राहु वक्री गति का ग्रह है इसलिए गुरु के अंश से इसके अंश कम होने का अर्थ है राहु ने गुरु के शुभ परिणामो का हरण कर उससे तेजहीन कर दिया है, इसलिये चांडाल योग बन रहा है। 

पापी ग्रह राहु ने ज्ञानी ग्रह गुरु को निर्बल कर दिया है, यह ऐसा है जैसे कोई सेठ जिसके जेब नोटों से भरी हुई है के सम्मुख जेबकतरा है और वह जेब काट कर सेठ को श्रीहीन कर ही देगा यह सुनिश्चित है, जब तक जेब नहीं कटी तब तक सेठ श्रीवान ही है उसके करीब आता जेबकतरा भी जो उसके श्री और ज्ञान को निगलने वाला है अतः उसमें भी सेठ जैसे श्री और ज्ञान के गुण आयंगे ही। अब इस स्थिति में राहु में भी गुरु के गुण व तेज और उसका आभामंडल आ ही जाता है। उसमें भी गुरु जैसी प्रभाव क्षमता होने से उस राशि को दो गुरूओं के बल का प्रभाव मिलता है। जब गुरु को ग्रहण लग जायेगा यानि गुरु के अंशो से राहु के अंश कम होने लगेंगे तब स्थिति भिन्न होगी, गुरु ग्रह के प्रभाव न्यून होंगे। 

पापी ग्रह राहु की संगत का असर उस पर पड़ेगा ही। विचार करे तो पहली स्तिथि में गुरु के अंश कम होने पर वह भाव संधि के नज़दीक होगा ओर भाव पर उसका नियंत्रण रहेगा, दूसरी स्थिति में राहु भाव संधि के नजदीक होगा इसलिये भाव संबंधी परिणामो पर उसका ही प्रभाव होगा, यह स्तिथि अशुभ है।(भाव संधि को आप निरयण या सायन जो भी मानते है उससे समझे, निरयण में भाव में उदित अंश को भाव मध्य मानते है, सायन में उदित अंश को भाव का आरंभ माना जाता है)

राहु की यह स्थिति सौरमंडल के सातों ग्रहों पर लागू होगी, इसमें चंद्र-राहु का ग्रहण योग भी है.ग्रहों के शुभ प्रभाव नैसर्गिक गुण राहु के अंशो से कम होने पर युति योग में बढ़ जायँगे राहु के अंशो से ज़्यादा होने पर ग्रह अपना पूर्ण दुष्प्रभाव देंगे।("अन्य ग्रहों की राहू के साथ युति होने पर भी शीघ्र ही लिखूंगा") मेरे लेख में अपवाद संभव है पर ये वास्तविकता के निकट है।
गुरु-राहु का चांडाल योग शुभ भी होता है गुरु-राहु का चांडाल योग शुभ भी होता है Reviewed by Upendra Agarwal on सितंबर 06, 2018 Rating: 5

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