होलिका दहन 2011, कब करें, कैसे करें, पूजन विधि.

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19 मार्च 2011, शनिवार, पूर्वाफाल्गुणी नक्षत्र में इस वर्ष की होलिका दहन किया जायेगा. प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं. इस दिन भद्रा 17:35 तक ही होने के कारण सूर्यास्त के बाद 19 मार्च, 2011 को गोधूलि बेला में होलिका-दहन किया जा सकता है. इसलिए होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा समय के पश्चात् होली का पूजन किया जाना चाहिए.

भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है,  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है. हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं. वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है.

आज की युवा पीढ़ी में हमारी प्राचीन नीतियों को लेकर कई सवाल उठते हैं, परंतु भारतीय धर्म साधना के परिवेश में वर्ष भर में शायद ही ऐसा कोई त्योहार हो जिसे हमारे राज्य अपने-अपने रीति रिवाजों के अनुसार धूमधाम से न मनाते हो.

होलिका में आहुति देने वाली सामग्रियां

होलिका दहन के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर.

होलिका दहन की पूजा विधि

होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.
  1. एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां सामग्री के रुप में रखी जाती है. 
  2.  इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.
  3.  होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.
  4. कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.
  5. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.
  6. सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है.
  7. ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.

राख का लेपन करते समय निम्न मंत्र का जाप करना कल्याणकारी रहता है

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌

इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.

होलिका पूजन के बाद होलिका दहन

विधिवत रुप से होलिका पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है. होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है. इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए. ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है.

इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है. तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए. होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है.

आधुनिक परिपक्ष्य में होलिका दहन

आज के संदर्भ में वृ्क्षारोपण के महत्व को देखते हुए, आज होलिका में लकडियों को जलाने के स्थान पर, अपने मन से आपसी कटुता को जलाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हम सब देश की उन्नति और विकास के लिये एक जुट होकर कार्य कर सकें. आज के समय की यह मांग है कि पेड जलाने के स्थान पर उन्हें प्रतिकात्मक रुप में जलाया जायें. इससे वायु प्रदूषण और वृ्क्षों की कमी से जूझती इस धरा को बचाया जा सकता है. प्रकृ्ति को बचाये रखने से ही मनुष्य जाति को बचाया जा सकता है, यह बात हम सभी को कभी नहीं भूलनी चाहिए.


आप सभी को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं....

होलिका दहन 2011, कब करें, कैसे करें, पूजन विधि. होलिका दहन 2011, कब करें, कैसे करें, पूजन विधि. Reviewed by Upendra Agarwal on मार्च 10, 2011 Rating: 5

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