दीपावली पर विशेष रूप से पूज्य यंत्र एवं उनका महत्व

दीपावली प्रकाश का पर्व है। पांच दिनों का यह पर्व धनतेरस से प्रारंभ होकर भाई दूज (यमद्वितीया) समाप्त होता है।
जीवन को सुखमय बनाने के लिए लक्ष्मी अर्थात धन की आवश्यकता होती है। लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए दीपावली के शुभ अवसर पर उनके विभिन्न यंत्रों की पूजा साधना की जाती है।
   कुबेर यंत्र : धन के देवता कुबेर सभी यक्षों, गंधर्वों और किन्नरों के अधिपति   हैं। ये नौ निधियों पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील एवं वर्चसु के भी स्वामी हैं। हर निधि अनंत वैभवों की प्रदाता मानी गई है और राजाधिराज कुबेर तो गुप्त और प्रकट संसार के समस्त वैभवों के स्वामी हैं ही।
कुबेर का स्वररूप एवं उपासना
भगवान कुबेर के एक मुख्य ध्यान श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। सभी निधियां इनके समीप स्थापित हैं। इनके एक हाथ में भव्य गदा है तथा दूसरा हाथ धन प्रदान करने की वर मुद्रा में उठा हुआ है। इनका शरीर स्थूल और उदर उन्नत है। ये भगवान शिव के मित्र हैं, हर व्यक्ति को इनका ध्यान करना चाहिए।
श्री विद्यार्णव, मंत्रमहार्णव, मंत्रमहोदधि, श्री तत्व निधि तथा विष्णुधर्मोत्तराधि पुराणों में कुबेर उपासना के मंत्र, यंत्र, ध्यान आदि का उल्लेख है। इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदाक्षरात्मक छोटे बड़े अनेक मंत्र हैं। यहां प्रसंगवश उनके विभिन्न मंत्रों से विभिन्न यंत्रों की उपासना का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
अष्टाक्षर मंत्र : ÷÷ओम वैश्रवणाय स्वाहा।''
पंचत्रिंशदाक्षर मंत्र : ÷÷ ओम ÷यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादिपतये धनधान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।''
दुख दारिद्र्‌य से मुक्ति हेतु कुबेर मंत्र और यंत्र का क्रमशः विधिवत जप और पूजन, ध्यान तथा उपासना करें। जप और उपासना से आपदाओं से रक्षा भी होती है।
कनकधारा यंत्र
आज के युग में हर व्यक्ति शीघ्रातिशीघ्र धनवान बनना चाहता है। धन प्राप्ति हेतु कनकधारा यंत्र के सामने बैठकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इस यंत्र की उपासना से ऋण और दरिद्रता से शीघ्र मुक्ति मिलती है। साथ ही बेरोजगारों को रोजी मिलती है और व्यापारियों के व्यापार में उन्नति होती है। कनकधारा स्तोत्र की रचना ही कुछ इस प्रकार से गुच्छित है कि एक विशेष अलौकिक दिव्य प्रभाव उत्पन्न होता है। यह यंत्र अत्यंत दुर्लभ परंतु लक्ष्मी प्राप्ति के लिए रामबाण और यह स्तोत्र अपने आप में अचूक, स्वयंसिद्ध तथा ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ है। इस यंत्र की उपासना से रंक भी धनवान हो जाता है। परंतु इसकी प्राण प्रतिष्ठा की विधि जटिल है। इस जटिल विधि के कारण इसे कम ही लोग सिद्ध कर पाते हैं। कथा है कि जगद्गुरु शंकराचार्य ने एक दरिद्र ब्राह्मण के घर इस स्तोत्र का पाठकर स्वर्ण वर्षा कराई थी। प्रसिद्ध गं्रथ शंकर दिग्विजय के चौथे सर्ग में इस घटना का उल्लेख है।
मंत्र- ÷ ओम वं श्रीं वं ऐं ह्रीं-श्रीं क्लीं कनक धारयै स्वाहा'
लक्ष्मी यंत्र
यह यंत्र बुधवार को घर में स्थापित करना चाहिए। दीपावली की रात इस यंत्र पर गुलाब के २१ फूल रखकर निम्नोक्त मंत्र का जप करने से दरिद्रता दूर होती है।
मंत्र- ÷÷ ओम श्रीं श्रियै नमः।''
अष्टलक्ष्मी यंत्र
शीघ्र धनलाभ के लिए दीपावली की रात अष्टलक्ष्मी यंत्र की स्थापना कर शंख की माला से निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
मंत्र- ÷÷ ओम श्रीं अष्टलक्ष्म्यै दारिद्र्‌य विनाशिनी सर्व सुख समृद्धिं देहि देहि ह्रीं ओम नमः।''
व्यापार में शीघ्र वृद्धि हेतु सिद्ध
बीसा यंत्र
व्यापार में वृद्धि और उन्नति के लिए इस यंत्र को दीपावली के दिन लक्ष्मी गणेश के पूजन स्थान के समीप या दुकान अथवा फैक्ट्री में स्थापित कर इसका धूप, दीप आदि से पूजन अर्चन करना चाहिए।
दीपावली पर विशेष रूप से पूज्य यंत्र एवं उनका महत्व दीपावली पर विशेष रूप से पूज्य यंत्र एवं उनका महत्व Reviewed by Upendra Agarwal on अक्तूबर 19, 2011 Rating: 5

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