कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, रुप चौदस, रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी या नरका पूजा के नाम से भी जानते हैं. नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन मुख्य रूप से मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है. इस वर्ष 2011 को नरक चतुर्दशी 25 अक्तूबर दिन मंगलवार के दिन मनाई जाएगी.
इस चौदस के दिन यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैनस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दग्ध, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चौदह नामों से प्रत्येक बार एक अंजलि जल छोड़ते हुए जो यमराज का तर्पण करते हैं, उन्हें कभी अकाल मृत्यु प्राप्त नहीं होती, ऎसा मंत्रशास्त्रीय प्रयोग भी मिलता है। इससे पूर्व की रात्रि (यमत्रयोदशी) को यमराज के नाम से चौराहे पर दीपक रखते समय तथा चतुर्दशी को (जिसे यमचतुर्दशी भी कहा गया है) यमतर्पण करते समय समस्त मानवों की एक ही प्रार्थना रहती है, "हे यम धर्मराज, आप हमें देखते रहें पर हम आपको कभी न देखें, ऎसा वरदान हमें दीजिए।" कितनी अद्भुत कामना है! यमराज अपने मुनीम चित्रगुप्त के माध्यम से प्रत्येक प्राणी के अच्छे-बुरे कर्मो का लेखा-जोखा लेते रहते हैं। अत: वे तो प्रत्येक संसारी पर नजर रखेंगे ही, पर हमें मृत्यु कभी न आए, हम यमराज का मुंह कभी न देखें, यह प्रत्येक प्राणी चाहता है। इसी कामना का अवसर है यह दिन।
महामारियों की यातना और नरक यातना को हमारे यहां सदा से पर्यायवाची सा माना गया है। वर्षा ऋतु के अवसर पर होने वाली रोगाणु जन्य महामारियों से बचने के जो अनेक विधान धार्मिक कृत्यों के रूप में भाद्रपद और आश्विन मास में बताए गए हैं उनकी पूर्णाहुति का पर्व ही तो है यह नरक चतुर्दशी जिस दिन आप नरक यातना से त्राण पाने का हर्ष मनाते हैं। आयुर्वैज्ञानिक भी वर्षाकाल को रोगाणु संक्रमण का सम्भावित काल मानते हैं। ऋतु परिवर्तन के कारण शरत् काल में भी अनेक रोग पैदा हो सकते हैं। संस्कृत में इसीलिए एक विनोदपूर्ण अभियुक्ति प्रसिद्ध हो गई है- "वैद्यानां शारदी माता वसन्तस्तु पिता स्मृत:।" अर्थात् वैद्यों और डाक्टरों के लिए वसन्त ऋतु पिता की तरह और शरद् ऋतु माता की तरह हितैषी होते हैं, उन्हें इन दिनों अच्छी आमदनी होती है।
इसीलिए इन दोनों ऋतुओं में स्वास्थ्य चर्या के विधान धार्मिक कृत्यों में गूंथ कर विहित कर दिए गए हैं। जिस प्रकार गणगौर और तीज जैसे त्योहारों की पूर्व संध्या पर उत्सव निमित्त श्ृगार करने के लिए महिलाएं सिंजारा मनाती हैं उसी प्रकार दीपावली की पूर्व संध्या का सिंजारा है रू पचौदस। इस चतुर्दशी को जिस प्रकार तिल का भोजन और तैलाभ्यंग (तेल मालिश) विहित है उसी प्रकार दन्तधावन, उबटन, गर्म जल से स्नान और श्ृगार भी। यह सब किसी बड़े उत्सव की तैयारी के लिए किए जाने वाले प्रसाधन का स्वरू प स्पष्ट कर देता है। इस उत्सव के साथ जो पौराणिक मान्यताएं जुड़ गई हैं वे भी इसकी सांस्कृतिक महत्व को उजागर करती हैं।
नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं. नरक चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा उपासना की जाती है. इस रात्रि के पूजन एवं दीप जलाने की प्रथा के संदर्भ में पौराणिक कथाएं तथा कुछ लोक मान्यताएं प्रचलित हैं जो इस पर्व के महत्व को परिलक्षित हैं.
यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो उनसे पूछते हैं कि मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं. कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताएं जिस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूत उनसे कहते हैं कि, हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है.
यह सुनकर राजा यमदूतों से विनती करते हुए कहते हैं कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें. राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगते हैं और राजा की आयु एक वर्ष बढा़ देते हैं. यमदूतों के जाने पर राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास जाता हैं, उन्हें सारा वृतान्त सुनाता है.
ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें. ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें तो वह इस पाप से मुक्त हो सकते हैं. ऋषियों के कथन अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है और इस प्रकार राजा पाप मुक्त हो कर विष्णु लोक में स्थान पाता है. तभी से पापों एवं नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी व्रत प्रचलित है.
एक अन्य कथा अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी. इसके साथ ही साथ श्री कृष्ण भगवान ने सोलह हजार कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त करवाया था. इस उपलक्ष पर नगर वासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा.
मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोधन पूजा , भाईदूज ।
इस चौदस के दिन यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैनस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दग्ध, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चौदह नामों से प्रत्येक बार एक अंजलि जल छोड़ते हुए जो यमराज का तर्पण करते हैं, उन्हें कभी अकाल मृत्यु प्राप्त नहीं होती, ऎसा मंत्रशास्त्रीय प्रयोग भी मिलता है। इससे पूर्व की रात्रि (यमत्रयोदशी) को यमराज के नाम से चौराहे पर दीपक रखते समय तथा चतुर्दशी को (जिसे यमचतुर्दशी भी कहा गया है) यमतर्पण करते समय समस्त मानवों की एक ही प्रार्थना रहती है, "हे यम धर्मराज, आप हमें देखते रहें पर हम आपको कभी न देखें, ऎसा वरदान हमें दीजिए।" कितनी अद्भुत कामना है! यमराज अपने मुनीम चित्रगुप्त के माध्यम से प्रत्येक प्राणी के अच्छे-बुरे कर्मो का लेखा-जोखा लेते रहते हैं। अत: वे तो प्रत्येक संसारी पर नजर रखेंगे ही, पर हमें मृत्यु कभी न आए, हम यमराज का मुंह कभी न देखें, यह प्रत्येक प्राणी चाहता है। इसी कामना का अवसर है यह दिन।
महामारियों की यातना और नरक यातना को हमारे यहां सदा से पर्यायवाची सा माना गया है। वर्षा ऋतु के अवसर पर होने वाली रोगाणु जन्य महामारियों से बचने के जो अनेक विधान धार्मिक कृत्यों के रूप में भाद्रपद और आश्विन मास में बताए गए हैं उनकी पूर्णाहुति का पर्व ही तो है यह नरक चतुर्दशी जिस दिन आप नरक यातना से त्राण पाने का हर्ष मनाते हैं। आयुर्वैज्ञानिक भी वर्षाकाल को रोगाणु संक्रमण का सम्भावित काल मानते हैं। ऋतु परिवर्तन के कारण शरत् काल में भी अनेक रोग पैदा हो सकते हैं। संस्कृत में इसीलिए एक विनोदपूर्ण अभियुक्ति प्रसिद्ध हो गई है- "वैद्यानां शारदी माता वसन्तस्तु पिता स्मृत:।" अर्थात् वैद्यों और डाक्टरों के लिए वसन्त ऋतु पिता की तरह और शरद् ऋतु माता की तरह हितैषी होते हैं, उन्हें इन दिनों अच्छी आमदनी होती है।
इसीलिए इन दोनों ऋतुओं में स्वास्थ्य चर्या के विधान धार्मिक कृत्यों में गूंथ कर विहित कर दिए गए हैं। जिस प्रकार गणगौर और तीज जैसे त्योहारों की पूर्व संध्या पर उत्सव निमित्त श्ृगार करने के लिए महिलाएं सिंजारा मनाती हैं उसी प्रकार दीपावली की पूर्व संध्या का सिंजारा है रू पचौदस। इस चतुर्दशी को जिस प्रकार तिल का भोजन और तैलाभ्यंग (तेल मालिश) विहित है उसी प्रकार दन्तधावन, उबटन, गर्म जल से स्नान और श्ृगार भी। यह सब किसी बड़े उत्सव की तैयारी के लिए किए जाने वाले प्रसाधन का स्वरू प स्पष्ट कर देता है। इस उत्सव के साथ जो पौराणिक मान्यताएं जुड़ गई हैं वे भी इसकी सांस्कृतिक महत्व को उजागर करती हैं।
नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं. नरक चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा उपासना की जाती है. इस रात्रि के पूजन एवं दीप जलाने की प्रथा के संदर्भ में पौराणिक कथाएं तथा कुछ लोक मान्यताएं प्रचलित हैं जो इस पर्व के महत्व को परिलक्षित हैं.
छोटी दीपावली \ नरक चतुर्दशी से जुड़ीं कथाएं
नरक चतुर्दशी के पर्व के साथ अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार रन्ति देव नामक एक राजा हुए थे. वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरूष थे सदैव धर्म कर्म के कार्यों में लगे रहते थे. जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आते हैं. और राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढते हैं.यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो उनसे पूछते हैं कि मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं. कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताएं जिस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूत उनसे कहते हैं कि, हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है.
यह सुनकर राजा यमदूतों से विनती करते हुए कहते हैं कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें. राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगते हैं और राजा की आयु एक वर्ष बढा़ देते हैं. यमदूतों के जाने पर राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास जाता हैं, उन्हें सारा वृतान्त सुनाता है.
ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें. ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें तो वह इस पाप से मुक्त हो सकते हैं. ऋषियों के कथन अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है और इस प्रकार राजा पाप मुक्त हो कर विष्णु लोक में स्थान पाता है. तभी से पापों एवं नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी व्रत प्रचलित है.
एक अन्य कथा अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी. इसके साथ ही साथ श्री कृष्ण भगवान ने सोलह हजार कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त करवाया था. इस उपलक्ष पर नगर वासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा.
मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोधन पूजा , भाईदूज ।
छोटी दीपावली \ नरक चतुर्दशी 2011
Reviewed by Upendra Agarwal
on
अक्टूबर 18, 2011
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नरक चतुर्दशी नरकासुर की कहानी
जवाब देंहटाएंनरक चतुर्दशी नरकासुर की कहानी: प्राचीन काल में नरकासुर प्रद्योशपुरम राज्य पर शासन किया। पुराणों में यह वर्णन है कि भूदेवी का बेटा नरक ने, गंभीर तपस्या के बाद भगवान ब्रह्मा द्वारा दिए गए एक आशीर्वाद से असीम शक्ति हासिल कर ली है।