करवा चौथ व्रत 2011

 करवा चौथ का पर्व विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने के लिये करती है. तथा माता का पूजन कर अपने पति की लम्बी आयु के लिये प्रार्थना करती है. इस व्रत में सारे दिन व्रत करने के बाद सायं काल में चांद देखने के बाद व्रत समाप्त किया जाता है. व्रत के दिन भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती है.

कार्तिक मास कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत

इस व्रत पर मुख्य रुप से शिव पार्वती का पूजन किया जाता है. कार्तिक मास की कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी पर किया जाने वाला यह व्रत विशेष रुप से मनाया जाता है. यूं भी हमारे पुराणों के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का पूजन पारिवारिक सुख-शान्ति और समृ्द्धि के लिये किया जाता है. पति-पत्नी के युगल के रुप में शिव - पार्वती अपना धार्मिक व पौराणिक दोनों महत्व रखते है.

करवा चौथ कथा

इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिनमें एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है. बहुत समय पहले की बात है, एक लडकी थी, उसके साथ भाई थें, उसकी शादी एक राजा से हो गई. शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वो अपने मायके आ गई. उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. वह बडी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतिक्षा कर रही थी.

उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गयें. वे सभी अपने बहन से बेहद स्नेह करते थें. उन्होने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई. और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया देखा दी. बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया. बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबियत खराब होने लगी.

अपने पति की तबियत खराब होने की खबर सुन कर, वह अपने पति के पास ससुराल गई. और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें. पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृ्त्यु हो चुकी है, क्योकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था.

यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों की करनी के लिये क्षमा मांगी. माता पार्वती ने कहा" कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जायेगा. लेकिन इसके लिये तुम्हें, करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा. इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई. माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया.

करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थय और दीर्घायु के लिये किया जाने वाला व्रत है. उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा व विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, फैशन और जमाने के नये रंग में रंग गया.

करवा चौथ के व्रत का महत्व समय के साथ और भी बढ गया है. समय के साथ आधुनिक और शिक्षित महिलाओं के वर्ग में जहां एक ओर अन्य व्रतों का प्रचलन कम हुआ है, वही करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवन साथी के प्रति स्नेह व्यक्त करने का प्रर्याय बन गया है. आज यह केवल सुहागिनों का व्रत ही न रहकर, पतियों के द्वारा अपनी पत्नियों के लिये रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है.

देखने में आया है, कि इस व्रत को पति और पत्नी दोनों रखते है, एक-दूसरे के लिये पूरे दिन व्रत करने के बाद रात को किसी रेस्तरां में जाकर दोनों साथ में भोजन भी करते है. यानी इस व्रत का मूल आधार आज आपसी प्रेम और समर्पण रह गया है. कथा, सुनने, निर्जल रहने, चांद को अर्ध्य देने और पति द्वारा पानी पिलाए जाने जैसी रस्में भी निभाने कि पूरी कोशिश कर ली जाती है. पर नौकरी पेशा होने पर सभी रीतियां विधि विधान के अनुसार तो नहीं होती है.


करवा चौथ पूजन विधि

करवा चौथ का व्रत करने के लिये प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर, प्रात भगवान शिव पार्वती की पूजा की जाती है. कोरे करवे में पानी भरकर, करवा चौथ का कलैण्डर लगा कर, पूजा कि जाती है. सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर सायं काल में फिर से पूजा कर व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है. सायं काल में चांद की पूजा कर इस व्रत को समाप्त किया जता है.
|| करवा चौथ व्रत ||
|| पूजन विधि ||
जो सौभग्यवती स्त्रियाँ इस करक चतुर्थी का व्रत करके सायंकाल विधि से पूजन करेंगी वे अचल सौभग्य,धन,पुत्र बड़े भारी यश को प्राप्त होंगी| 'कारक' इस मन्त्र को पढ़ कर दुग्ध अथवा जल से भरा हुआ कलश लेकर उसमे पंच रत्ना डालकर ब्राह्मण को देवे और कहें कि गणेश जी इस करक करवा के दान से मेरे पति बहुत काल तक जीवित रहें,मेरा सौभग्य सदा बना रहे |सुहागिन स्त्रियों को भी देवे और उनसे लेवे भी| इस प्रकार सौभग्य की इच्छा करने वाली स्त्रियाँ जो भी इसे करेंगी वह सौभाग्य, पुत्रा तथा अचल लक्ष्मी को प्राप्त होंगी |
||  करक चतुर्थी करवा चौथ व्रत कथा ||
मांधाता कहने लगे की जिस समय अर्जुन नीलगिरि पर तप करने के लिए चले गये तो उनके पीछे द्रोपदी खिन्न मन होकर चिंता करने लगी की अर्जुन ने बड़े कठिन कर्म का प्रारंभ कर दिया है, किंतु विघ्न डालने वाले शत्रु अनेक है| इस प्रकार चिंता करके श्री कृष्ण जी से सब विघ्नो के नाश करने का पूछने लगी| द्रोपदी ने कहा की हे सर्व जगत के नाथ! आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताने की कृपा करें,जिसके करने से सभी विघ्न नाश हो जाएँ| श्री कृष्ण जी ने कहा की हे महाभागे! श्री पार्वती जी ने भगवान शंकर जी से यही प्रशन किया था, तब श्री शंकर जी ने पार्वती से जो कहा था - हे वराराह! वही करक चतुर्थी नाम का व्रत का नाश करने वाला है | श्री पार्वती जी ने कहा कि भगवान! वह करक चतुर्थी का व्रत किस प्रकार का है तथा उसका विधान क्या है और पहले भी उस व्रत को किसी ने किया है| शंकर जी बोले की पार्वती जी के अनेक प्रकार के रत्नो से शोभायमान, चाँदी और सोने के भवनो से भरे विद्वान पुरुषो से सुसेवित, लोको को वश मे करने वाली दिव्य स्त्रियों से शोभायमान जहाँ पर सदैव ही वेद ध्वनि होती है ऐसे स्वर्ग से सभी मनोहर, परम रमणीक शुक्रप्रस्थपुर मे एक वेद शर्मा नामक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी का नाम लीलावती था| उसके महा पराक्रमी सात पुत्र और संपूर्ण लक्षणो से युक्त वीरवती नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई| उसकी आँखे नील कमल के समान और मुख चंद्रमा के समान था| उसके विवाह के योग्य समय आ जाने पर वेद शर्मा ने एक वेद शास्त्र के ज्ञानी विद्वान ब्राह्मण को, विवाह विधि से उसे प्रदान कर दिया इसके पश्चात वीरवती ने अपने भाइयों की स्त्री भौजाइयो  समेत गौरी  का व्रत किया, फिर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रतोपवास कर सायंकाल मे स्नान कर सबने भक्ति भाव से वट वृक्ष का चित्र बना कर, उसके नीचे शंकर जी, गणेश जी और स्वामी कार्तिकेय के साथ पार्वती जी का चित्र बनाया और ' ओम नम: शिवाय ' इस मंत्र से गन्ध, पुष्प और अक्षतादि से गौरी का पूजन किया| फिर शिवजी गणेश जी तथा षडानन का अलग- अलग पूजन करती हुई पकवान अक्षत तथा दीपक से युक्त दस ' करवा' और गेहूँ के पिशान और गुड के बने हुए पकवान तथा और भी अनेक प्रकार के फल आदि भोज्य पदार्थो को अर्पण करके, अर्ध्य देने के लिए चन्द्रोदयकी प्रतीक्षा करने लगी | इसी बीच में वह वीरवती बाला भूख प्यास की पीड़ा से मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी| तब उसके सब भाई बांधव रुदन करने लगें | फिर वीरवती का मुख धोकर पंखे से हवा करके  उसको ढाढस बॅधाने लगे कि अब चंद्रमा उदय होने लगा वाला हीहै| उसका भाई चिंता युक्त होकर एक महान वट वृक्ष पर चढ़ गया| बहिन के प्रेम से दुखी उसके भाई ने जलती हुई लकड़ी लेकर चंद्रमा के उदय होने का कर दिखाया| उसने चंद्रमा का उदय जानकर,दुख का त्याग करके विधि विधान से अर्ध्य देकर भोजन कर लिया| इस प्रकार व्रत के दूषित हो जाने के कारण उसका पति मर गया| तब वीरवती ने अपने पति को मरा हुआ देखकर पुन: शिव जी का पूजन कर एक वर्ष तक निराहार व्रत किया| वर्ष के समाप्त होने पर करक चतुर्थी का व्रत उसकी भौजाइयो ने किया| वीरवती ने भी पोर्वक्त विधान से व्रत किया| जब उस दिन देव कन्याओं के साथ इंद्राणी से सब बातें पूछी तब वीरवती ने कहा कि जब मैं करक चतुर्थी का व्रत करके अपने पति के घर आई तो मेरा पति मृत्यु को प्राप्त हो गया, मैं नही जानती किस पाप के कर्म से मुझको यह फल मिला| हे मातेश्वरी! हमारे भाग्य से आप यहाँ आ गई है| सो मेरे पति को जीवित करके मुझ पर कृपा करें| इंद्राणी ने कहा कि शुभे!गत वर्ष जो तुमने अपने पति के घर मे करक चतुर्थी का व्रत किया था तो बिना चंद्रमा के उदय हुए ही तुमने अर्ध्य दे दिया इसी से तुम्हारा व्रत दूषित हो गया और तुम्हारा पति मृत्यु को प्राप्त हो गया| अब तुम यत्न के साथ इस करक चतुर्थी का व्रत करो तत्पश्चात इस व्रत के प्रभाव से मैं तुम्हारेपति को जीवित कर दूँगी| श्री कृष्ण कहने लगे कि हे द्रोपदी! इंद्राणी के वचन सुनकर वीरवती ने विधान पूर्वक व्रत किया| इस प्रकार उसके करक चतुर्थी का व्रत करने से इंद्राणी ने प्रसन्न होकर जल द्वारा अभिसिंचन कर उसके पति को जीवित कर दिया| वह देवता के समान हो गया| इसके पश्‍चात वीरवती अपने पति के साथ घर आकर आनंद करने लगी| वीरवती के व्रत के प्रभाव से उसका पति धन- धान्य, पुत्र तथा आयु को प्राप्त हुआ, इसलिये तुम भी इस व्रत को यत्न पूर्वक करो| सूत जी कहने लगे की हे ऋषियों! इस प्रकार श्री कृष्ण के वचनो को सुनकर द्रोपदी ने इस करवाचौथ के व्रत को किया जिसके प्रभाव से संग्राम मे कौरवों को जीतकर अतुलनीय राज्य को प्राप्त किया जिससे उनका सब दुख जाता रहा|
करवा चौथ व्रत 2011 करवा चौथ व्रत  2011 Reviewed by Upendra Agarwal on अक्तूबर 13, 2011 Rating: 5

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