ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनि बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है। अतः उसकी साढ़ेसाती हो या अढ़ैया-काटे नहीं कटती। जब शनि का अच्छा प्रभाव होता है तो हमें पता ही नहीं चलता क्योंकि अच्छा समय जल्दी व्यतीत होता है। परंतु जब शनि का प्रकोप काल हो तो अढ़ैया या साढ़ेसाती युगों जैसी लगती है। शनि की गति कम क्यों है? इससे संबंधित कुछ कथाएँ हैं।
यह तो हम जानते ही हैं कि सभी देवताओं, ग्रहों पर रावण का आतंक था। तुलसीदासजी ने लिखा ही है-
'कर जोरे सुर दिसप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल समीता॥'
भृकुटि बिलोकत सकल समीता॥'
तो साहब जब मेघनाथ मंदोदरी के गर्भ में आया, तो रावण बड़ा प्रसन्न हुआ। पुत्र विजेता, भाग्यशाली, आज्ञाकारी, सर्वगुण संपन्न हो, इस उद्देश्य से रावण ने उसकी जन्म से पूर्व ही कुंडली बनवाई। विद्वानों ने बताया कि कौन-सा ग्रह कहाँ, किस खाने में होना चाहिए। लंकापति ने सभी ग्रहों को आदेश दिया वे अपने-अपने निर्धारित खानों में खड़े हो जाएँ। देवता चिंतित हुए, ग्रह भी परेशान हुए कि यदि ऐसी स्थिति में रावण पुत्र पैदा होगा, तो रामावतार असफल हो जाएगा और उसे कोई मार नहीं सकेगा।
ग्रहों ने आपस में विचार किया कि इस जन्मपत्रिका में चुपचाप कोई परिवर्तन करना ही होगा, पर रावण के कोप से वे परिचित थे। सो अंत में शनि इस काम के लिए तैयार हुए और ठीक जब मंदोदरी को प्रसव पीड़ा आरंभ हुई, तब वे अन्य खाने में चले गए।
मेघनाद के जन्म के पश्चात जब रावण को शनि की हरकत का पता चला तो क्रोध में आकर उसने शनि को उठाकर पटक दिया, जिससे उनकी एक टाँग टूट गई। इसीलिए शनि धीरे चलते हैं।
दूसरी कथा ऐसी है कि किसी देवता ने अपनी पुत्री का विवाह शनि से कर दिया। शनि कृष्ण भक्त थे। एक दिन वे भक्ति में डूबे हुए थे, उनकी पत्नी ने उनसे कुछ कहना चाहा, पर वे सुन न सके। कई घंटों में अनेक बार पत्नी ने उनका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया पर असफल रही। अब उसे क्रोध आ गया और उसने शनि को श्राप दिया कि 'इतनी देर से तुम मेरी ओर देख नहीं रहे हो। अब जिसकी ओर भी देखोगे, उसका बँटाढार हो जाएगा।' शनि हड़बड़ा कर उठे, पर तब तक देर हो चुकी थी। तब से बेचारे शनि नजरें नीचे करके चलते हैं कि उनकी दृष्टि किसी पर पड़ न जाए और इसी वजह से वे तेज नहीं चल सकते।
कुबेर देवता ने भगवान शिव को भोजन हेतु आमंत्रित किया। शिवजी ने कहा, 'मैं अपने शिष्य को भेज दूँगा।' कुबेर निराश तो हुए पर क्या करते। शंकरजी के प्रतिनिधि के रूप में शनि पधारे और उन्होंने इतना खाया कि कुबेर की रसोई, अन्न भंडार सब खाली हो गया। तब वे शनि के पैरों पर गिर पड़े।
तो ऐसे हैं शनि महाराज! जो भी हो हमारे इंदौर में उनका भव्य मंदिर तो है ही, शनि जयंती के अवसर पर संगीत सम्मेलन होते हैं, विद्वानों के व्याख्यान होते हैं। अपनी-अपनी श्रद्धा की बात है 'जाकी रही भावना जैसी, 'शनि' मूरत देखी तिन तैसी।'
ऐसे हैं शनि महाराज
Reviewed by Upendra Agarwal
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जनवरी 15, 2011
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