नीचस्थ लग्न बनाता है रोगी...

Jyotish



यदि आपका जन्म लग्न मेष में हुआ है तो उसका स्वामी दो भावों का होगा। दूसरा भाव अष्टम होगा, इसका स्वामी मंगल यदि नीच का होकर चतुर्थ सुख भाव में हुआ तो अधिकांशतः चोट का शिकार होता रहेगा। कभी-कभी ऑपरेशन भी हो सकता है। सीने में दर्द, ब्लडप्रेशर, मुकदमों में परेशानियाँ, जलभय, जहरीली वस्तु या जानवर के काटने की संभावना अधिक रहती है।

माता से विरोध, जमीन-जायदाद से हानि व पदच्युत भी होना पड़ सकता है। जनता में उसका प्रभाव नहीं रहता, पराक्रम भी कमजोर पड़ जाता है। यदि इस अवस्था में किसी जातक के मंगल हो उसे तत्‍काल मूँगा पहनना चाहिए व नित्य गुड़ की डली का सेवन करना चाहिए और सवा किलो गुड़ नदी में बहाना चाहिए।

वृषभ लग्न हो और उसका स्वामी शुक्र नीच का होगा तो वह पंचम भाव में षष्ठेश भी होगा। अतः ऐसे जातक का दिमाग गलत कार्यों में लगेगा व उससे अधिक लाभ भी कमाएगा। निम्न-स्तर के व्यक्तियों से संगति करने वाला भी होगा। निम्न स्तर की स्त्रियों से भी संपर्क होगा। कभी-कभी स्त्री के कारण कारावास भी हो सकता है। शुक्र कला सौंदर्य, अर्थ एवं स्त्री का कारक होता है। अतः इनकी गलत संगति मनुष्य को चरित्र से कमजोर कर देती है। मिथुन राशि का शुक्र भी लगभग नीच के ही समान फल देता है। इसकी शांति हेतु हीरा पहनना शुभ रहता है। वहीं शक्कर, चावल दान में देना चाहिए।

मिथुन लग्न हो और उसका स्वामी बुध दशम में हो तो वह चतुर्थ भाव का स्थायी होकर नीच का होगा। ऐसा जातक फेफड़े, सांस की नली, आंतड़ियाँ एवं दमा रोग से पीड़ित हो सकता है। उसे कारोबार, पार्टनर, शासन, व्यापार से संबंधित परेशानी उठानी पड़ सकती है। इन लग्न वालों को प्रायः गैस व सांस फूलने की बीमारी भी हो सकती है। कन्या लग्न वालों को पति या पत्नी तथा मिथुन लग्न वालों को पिता से परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।

कर्क लग्न वाले जातक को चँद्रमा लग्नेश होकर पंचम भाव में होगा। इन्हें अधिकतर गैस, ब्लड प्रेशर और पेट से संबंधित बीमारियाँ हो सकती हैं। दिमाग व मन हमेशा बेचैन महसूस करता होगा। संतान के विचार उत्तम नहीं होंगे। मन चंचल होगा और दिल भी कमजोर रहेगा। कभी-कभी सोचने की शक्ति कमजोर भी पड़ सकती है व किसी अन्य शत्रु ग्रह की दृष्टि पड़ने पर पागलपन भी हो सकता है। इनके प्रभाव को कम करने के लिए मोती चाँदी में बनवाकर सोमवार को प्रातः तर्जनी उँगली में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के बाद वाले सोमवार को पहनें। चाँदी के गिलास में जल व दूध सेवन करने से अनिष्ट प्रभाव समाप्त होंगे।

सिंह लग्न वाले जातकों का सूर्य तृतीय में होगा तो नीच का होगा या नेत्र, हृदय एवं हड्डी से संबंधित बीमारी अवश्य होगी। ऐसा जातक कुंठित होगा। पराक्रमहीन होगा व बुरे कार्य में बल दिखाने वाला होगा। ऐसा जातक व्यर्थ की बातों को लेकर झगड़े में पड़ने वाला होगा। इनके छोटे भाई-बहन नहीं होंगे। यदि किसी कारणवश हुए भी तो उनसे लड़ता-झगड़ता रहेगा, लेकिन ये स्वयं भाग्यशाली होंगे क्योंकि भाग्य पर उच्च दृष्टि पड़ेगी। अनिष्ट प्रभाव को कम करने के लिए माणिक स्वर्ण में बनवाकर शुक्ल पक्ष को 9 से 10 के बीच पहनें व सूर्यदेव को प्रातः दूध मिला जल चढ़ाएँ।

तुला लग्न वालों का स्वामी शुक्र अष्टमेश होकर द्वादश भाव में होगा, जो नीच का होगा। ऐसे जातक दुव्यर्सनों में खर्च करने वाले होंगे एवं इन्हें अनैतिक कार्यों में जेल भी जाना पड़ सकता है। ऐसा व्यक्ति नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला, अनेक स्त्रियों से संपर्क रखने वाला व तस्कर भी हो सकता है। ऐसे जातक को हीरा तर्जनी में चाँदी में जड़वाकर शुक्रवार को धारण करना चाहिए।

कन्या लग्न वाले जातकों का बुध दशमेश होकर सप्तम भाव में नीच का होने से दैनिक व्यापार-व्यवसाय में हानि, पार्टनर से धोखा, बेवफा पत्नी या पति मिलता है। ऐसा जातक शारीरिक दृष्टि से प्रभावी होता है, लेकिन नौकरी में सदैव परेशानियों से गुजरने वाला तथा शासन से अपयश ही मिलता है। ऐसे जातक को पन्ना पहनना चाहिए। सवा किलो हरे खड़े मूँग बहते पानी में बहाएँ व प्रति बुधवार मूँग की दाल का सेवन अवश्य सेवन करें व कोई भी एक हरा कपड़ा अवश्य पहनें या रुमाल या पेन रखें।

वृश्चिक लग्न वाले जातकों को षष्ठेश होकर नवम भाग्य भाव में नीच का मंगल होगा। ऐसे जातकों को भाग्योन्नति में बाधा आती है। धर्म के प्रति लापरवाह होते हैं। इन्हें अनेक बार गिरने से चोट लगती है एवं ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है। ब्लडप्रेशर के शिकार भी हो सकते हैं। इनको भाइयों से उत्तम सहयोग मिलता है। वहीं ये पराक्रमी भी होते हैं। माता से शत्रुता रखने वाले भी हो सकते हैं। मूँगा पहनना इनके लिए श्रेयस्कर होता है। इनके लिए गुड़ का सेवन व गुड़ दान करना शुभ रहेगा।

धनु लग्न वाले जातकों को चतुर्थेश होकर द्वितीय भाव में नीच का गुरु होगा। इन्हें आँखों की बीमारी, मोतियाबिन्द भी होगा। चश्मा भी लग सकता है। इनकी वाणी अभद्रतापूर्ण होगी। इन्हें कुटुम्ब से हानि तथा असहयोग मिलता रहता है। ऐसा जातक शराबी भी हो सकता है। आयु के मामलों में ये सौभाग्यशाली होते हैं।

मकर लग्न वाले जातकों को द्वितीयेश होकर चतुर्थ भाव में नीच का शनि होने से जातक का स्वभाव अत्यंत कठोर होगा व माता से नहीं बनेगी या बचपन से ही माता का साथ छूटेगा। मकान, भूमि, संपत्ति व वाहन से हानि पाएगा। जनता व कुर्सी से परेशान रहेगा। जमीन-जायदाद के मुकदमों में फँसा रह सकता है। घुटनों में दर्द व छाती में दर्द की शिकायत भी हो सकती है।

कुंभ लग्न वाले जातकों को द्वादशेश होकर तृतीय भाव में नीच का शनि होगा। ऐसे जातकों को छोटे भाई-बहनों का सुख नहीं मिलता। वहीं संतान का कष्ट भी बना रहता है। विद्या में कमजोर रहता है। हाथ में फ्रैक्चर हो सकता है एवं सिर में चोट लगने का भय बना रहता है। स्वभाव भी कटुता भरा होता है। जोड़ों में दर्द, रीढ़ की हड्डी बढ़ने का खतरा रहता है। नाक, कान, गले की बीमारी हो सकती है। ऐसे जातकों को कटैला व आसमानी रंग पहनना शुभ रहेगा। काले उड़द नदी में बहाएँ व सरसों के तेल, लोहे के तवे का दान व कोढ़ियों को खाना खिलाना शुभ रहेगा।

मीन लग्न वाले जातकों को दशमेश होकर एकादश भाव में नीच का गुरु होगा। ऐसा जातक व्यसनी, घमंडी, कटु वचन बोलने वाला होता है। बड़े भाई-बहन नहीं होते। ऐसे जातक को पीलिया, दिल में छेद, जिगर की बीमारी होती है। लोहे की वस्तु से हानि भी हो सकती है। पत्नी व संतान से पूर्ण सुख में कमी रहती है। शिक्षा उत्तम होती है। ऐसे जातक को छोटे-भाई बहनों का सुख मिलता है। इन्हें पुखराज पहनना हितकर रहेगा। चने की दाल दान करें व गुरुवार को केले की जड़ पानी सीचें व पीले वस्त्र अवश्य पहनें।

उपरोक्त लग्न वाले जातकों को अनिष्ट प्रभाव हो तो उनके बचाव हेतु साथ में दिए गए उपाय करने से कष्टों में कमी अवश्य आएगी, लेकिन विधि का विधान टल नहीं सकता। 
नीचस्थ लग्न बनाता है रोगी... नीचस्थ लग्न बनाता है रोगी... Reviewed by Upendra Agarwal on दिसंबर 28, 2010 Rating: 5

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