हस्तलेख पर पहली पुस्तक इटली के मैक्ली बाल्डी द्वारा 1932 में लिखी गई। इस तरह की पुस्तकों के अध्ययन से मनोवैज्ञानिक, पुलिस, व्यापारी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी हासिल करने में विशेष सहायता मिली।
हस्तलेखन को मस्तिष्क का लेखन कहा जाता है। क्योंकि अनुभवी हस्तलेख विशेषज्ञ के लिए यह किसी लेखक की अवचेतन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करता है। हर व्यक्ति की हस्तलिपि एक विशिष्टता लिए होती है और एक ही व्यक्ति की हस्तलिपि में परिवर्तन दुर्बलता, जल्दबाजी, उत्तेजना या बीमारी के कारण आ सकता है। किंतु ध्यानपूर्वक देखा जाए तो इन कारणों के साथ ही व्यक्ति का व्यक्तित्व पहचाना जा सकता है।
कुछ व्यक्ति गोल, बड़े स्पष्ट और कुछ व्यक्ति छोटे, घिचपिच, अस्पष्ट अक्षर लिखते हैं। लिखावट में भी जोर देकर या हल्के हाथों से लिखते हैं। इन बातों का सूक्ष्म विश्लेषण कर व्यक्ति के स्वभाव आदि के बारे में जाना जा सकता है।
जो व्यक्ति सीधा लिखते हैं तो इसका आशय है कि मस्तिष्क का प्रभाव हृदय पर पड़ता है और ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र, ठंडे और आत्मविश्वासी होते हैं। आसानी से बहाव में नहीं आते हैं।
वे कल्पनाशील और दूरदृष्टा नहीं होते हैं, परंतु व्यवस्थित और नियमित तथा सुचारु रूप से कार्य करना इनकी आदत में शामिल होता है। सीधी हस्तलिपि वालों में भाव संप्रेषणीयता का अभाव पाया जाता है । ये आत्मकेंद्रित, उच्च योग्यता से सुशोभित महत्वाकांक्षी व्यक्ति होते हैं।
अपनी योग्यता का पूर्णरूपेण उपयोग करने में निपुण होते हैं। अधिकांशतया इस तरह का हस्तलेखन नेता, मैनेजर और करियर को प्रधानता देने वाली महिलाओं में पाया जाता है।
क्या कहती है आपकी हस्तलिपि
Reviewed by Upendra Agarwal
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नवंबर 22, 2010
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