दशहरा 2011

आश्चिन मास का शुक्ल पक्ष अपने साथ शुभ नवरात्रे लेकर आता है. उपवास के समाप्त होते ही दशमी तिथि में दशहरा पूरे भारत वर्ष में बडी धूमधाम से मनाया जाता है. वर्ष 2011 में दशहरा पर्व 6 अक्तुबर के दिन मनाया जायेगा. दशहरे की प्रतिक्षा बच्चे, बूढे और बडे सभी बडी बेसब्री से कर रहे होते है.

दशहरे को विजय दशमी के नाम से भी जाना जाता है. दशहरे के पर्व पर बच्चों को दशहरे मेले से मनपसन्द खिलौने मिलते है. वहीं बडों के लिये यह धार्मिक महत्व रखता है. दशहरा पर्व असत्य पर सत्य की विजय का दिन है.

दशहरा पर्व मौसम में बदलाव का पर्व है. विजयादशमी का पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति ओर शरद के प्रारम्भ का सूचक है. यह दिन विजय यात्राओं व व्यापार का प्रारम्भ करने के लिये शुभ रहता है. दशहरा अपना दोहरा महत्व रखता है. इस दिन रावण वध और दुर्गा पूजन दोनों पर्व एक साथ मनाये जाते है.


दशहरा अबूझ मुहुर्त

दशहरे के दिन को साल के तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में शामिल किया जाता है. दशहरे के अलावा अन्य दो शुभ तिथियां चैत्र शुक्ल व कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा भी अन्य वर्ष की शुभ तिथियों में आती है. इस तिथि को सभी कार्यो के लिये शुभ माना जाता है. इस दिन में मुहूर्त के अन्य नियम नहीं लगाने पडते है. इसी लिये इस दिन को नया कार्य प्रारम्भ करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है. इसके अलावा इस दिन खरीदारी करना शुभ होता है.

खरीदारी में इस इन सोने, चांदी और वाहन की खरीदारी करना शुभ होता है. दशहरे के दिन पूरे दिन में भी मुहूर्त होते है. इसलिये इस दिन सभी बडे कार्य सरलता से किये जा सकते है. संक्षेप में कहें तो यह ऎसा मुहूर्त वाला दिन है. जिस दिन बिना मुहूर्त देखे कोई भी नये कार्य की शुरुआत की जा सकती है.


रामलीलाओं के समापन का दिन

आश्चिन मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही पूरे भारत के कोने कोने में रामलीलाओं का आयोजन किया जात है. इन लीलाओं में श्री राम की जीवन लीला नाट्य ढंग से दिखाई जाती है. इन रामलीलाओं का समापन दशहरे के दिन रावण के संहार के रुप में होता है.

दशहरे के दिन देश के अलग अलग जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे बडे पुतले लगाये जाते है. सायंकाल में जिनका दहन किया जाता है. इस घटना को देखने के लिये हर आयु के व्यक्ति दशहरा दहन देखने जाते है. रावण पर राम की विजय हमें यह शिक्षा देती है कि, सदैव अन्याय के खिलाफ लडना चाहिए.


शस्त्रों की पूजा और वाहन पूजा का दिन

इस दिन व्यक्ति अपने पूर्वजों से चले आ रहे शस्त्रों की पूजा करता है. साधना और सिद्धियों के लिये भी इस दिन का प्रयोग क्या जाता है. वाहनों का पूजन करना भी शुभ होता है. नये वस्त्र आभूषण धारण किये जाते है. दशहरे के दिन युवाओं व बच्चों का प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करना शुभ रहता है.


दशहरे पर वृक्ष पूजन

दशहरे के दिन शमी के पेड की पूजा करना विशेष रुप से शुभ रहता है. इसलिये इस दिन को पेडों के पूजन का दिन भी कहा जाता है. इस दिन पेडों का पूजन करने के पीछे एक पौराणिक कारण है. कहा जाता है कि महाभारत के अनुसार पांडु पुत्रों ने अज्ञात वास में छुपने से पहले इस दिन शमी के पेड में अपने अस्त्र शस्त्र छुपाये थे. इसके बाद ये एक पूरे वर्ष विराट देश में छुपकर रहे थे. इसके बाद उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति हुई.


दशहरे मेला सावधानियां

दशहरे आते ही सभी के मन में उत्साह भाव देखने योग्य होता है. परिवार के साथ घर से बाहर निकलते समय और तरह-तरह से सजी हुई खाद्ध सामग्रियों को देख, मुंह में पानी लाने से पहले एक बार अपने स्वास्थ्य के बारे में सोच लेना चाहिए. खुशी के पर्व में कोई परेशानी खडी हो जायें, घर से बाहर जाकर जो कुछ भी खायें, वह साफ सुथरा हो, इस बात का विशेष ध्यान रखें. खान - पान में सावधानी बरतना हितकारी रहेगा.

दशहरा दहन के वातावरण में धूल और धूआं ब्लडप्रशर संबन्धी परेशानियां दे सकता है. साथ ही यह एलर्जी की शिकायत भी पैदा करता है. इसके अतिरिक्त भीड में बच्चों का साथ न छोडे. दशहरा दहन को देखने के लिये करीब जाने से बचें, और अपने पर्स आदि का ध्यान रखना भी चोरी की घटनाओं में कमी करता है.


दशहरा पूजा विधि

दशहरे के दिन सुबह के समय रावण की पूजा करने का विधान है. पूजा समाप्त होने से पूर्व घर का कोई भी सदस्य भोजन ग्रहण नहीं करता है. इस दिन सुबह दैनिक कर्म से निवृत होने के पश्चात स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. घर के छोटे-बडे़ सभी सदस्य सुबह नहा-धोकर पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं. उसके बाद गाय के गोबर से दस गोले अर्थात कण्डे बनाए जाते हैं. इन कण्डो पर दही लगाई जाती है.
दशहरे के पहले दिन जौ उगाए जाते हैं. वह जौ दसवें दिन यानी दशहरे के दिन इन कण्डों के ऊपर रखे जाते हैं. उसके बाद धूप-दीप जलाकर, अक्षत, रौली-मौली से रावण की पूजा की जाती है. कई स्थानों पर लड़कों के सिर तथा कान पर यह जौ रखने का रिवाज भी दशहरे के दिन होता है. जहाँ - जहाँ भगवान राम की झाँकियां निकलती हैं, उन पर भी यह जौ चढा़ए जाते हैं. गोबर के यह दस कण्डे रावण के दसों सिर के प्रतीक माने जाते हैं. पूजा के पश्चात रावण रूपी कण्डों को भोजन का भोग लगाया जाता है.

विजयादशमी मुहूर्त

सुबह के समय पूजा करने के बाद संध्या समय में जब "विजय" नामक तारा उदय होता है तब रावण का दाह संस्कार पुतले के रुप में किया जाता है. रावण के पुतले जलाने का कार्य सूर्यास्त से पहले समाप्त किया जाता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार नहीं किया जाता है.

दशहरा पौराणिक कथा

इस दिन राम ने रावण का वध किया था. रामायण के अनुसार राम तथा सीता जी के वनवास के दौरान रावण, राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है. तब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता जी को रावण के बंधन से मुक्त कराने हेतु राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान एवं वानरों की सेना के साथ मिलकर रावण के साथ एक बड़ा युद्ध करते हैं.
युद्ध के दौरान श्री राम जी नौ दिनों तक युद्ध की देवी मां दुर्गा जी की पूजा करते हैं तथा दसवें अर्थात दशमी के दिन रावण का वध करते हैं और सीता जी को बंधन से मुक्त कराते हैं. इसलिए विजयदशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है. इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाद के पुतले जगह-जगह में जलाए जाते हैं.

रामलीला

दशहरा पर्व से पूर्व नौ दिनों तक कई स्थानों पर रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है. इसमें राम-सीता के जीवन की झाँकियां दिखाई जाती है. इस दौरान बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है. रामलीला नाटक का मंचन देश के विभिन्न क्षेत्रों में भी होता है और दशहरे वाले दिन रावण का संहार किया जाता है. देश भर में इस दिन विभिन्न जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे-बडे पुतले लगाए जाते हैं और शाम को श्रीराम के वेशधारी युवक अपनी सेना के साथ पहुंच कर रावण का संहार करते हैं.

दशहरा पूजा

विजय दशमी या दशहरे के त्यौहार पर अनेक संस्कारों, अनेक संस्करणों को पूर्ण किया जाता है इस त्यौहार के अंतर्गत अनेक प्रकार के रीति-रिवाज़ों का प्रचलन है. जैसे कृषि -महोत्सव या क्षात्र-महोत्सव, सीमोल्लंघन का परिणाम दिग्विजय तक पहुंचा, शमीपूजन, अपराजितापूजन एवं शस्त्रपूजन जैसी कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक कृतियां की जाती हैं.
दशहरे का एक सांस्कृतिक महत्व भी रहा है. इस समय भारत वर्ष में किसान फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है और उसी शुभ उमंग के अवसर पर वह उसका पूजन करता है. समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है.
महाराष्ट्र में इस अवसर को सिलंगण के नाम से मनाया जाता है. सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीण जन सुंदर-सुंदर नव परिधानों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकर अपने गांव वापस आते हैं. फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है.

विजयादशमी कथा

भगवान श्री राम जी ने इसी दिन लंका पर विजय प्राप्त की थी. ज्योतिर्निबन्ध में कहा गया है कि आश्विन शुक्ल दशमी के दिन संध्या तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है. इस त्यौहार के संबंध में एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है.
एक बार कि बात है माता पार्वती जी ने भगवान शिव से विजयादशमी त्यौहार के विषय में तथा इस पर्व का क्या फल प्राप्त होता है जानना चाहा. पार्वती जी के कथन को सुन भगवान भोलेनाथ उनसे कहते हैं कि आश्व्नि शुक्ला दशमी को संध्या समय में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है.
यह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने हेतु इसी समय प्रस्थान करने से विजय की प्राप्ति होती है. यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र बने तो यह और भी शुभ होता है. भगवान श्री राम जी ने इसी विजय काल समय लंका पर चढ़ाई की थी व विजय प्राप्त की थी इस कारण यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है.

सीमोल्लंघन

क्षत्रिय लोग इसे अपना एक महत्वपूर्ण त्यौहार मानते हैं. वह मानते हैं की शत्रु से युद्ध का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं को अपनी सीमा का उल्लंघन अवश्य करना चाहिए. एक बार राजा युधिष्ठिर के पूछने पर श्री कृष्ण जी उन्हें इसका महत्व बताते हुए कहा था कि विजयदशमी के दिन राजा को अपने दासों व हाथी- घोड़ों को सजाना चाहिए तथा धूम-धाम के साथ मंगलाचार करना चाहिए.
राजा अपने पुरोहित के साथ पूर्व दिशा में प्रस्थान कर अपने राज्य की सीमा से बाहर जाए और वहां वास्तु पूजा करके अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवता का पूजन करे. शत्रु की प्रतिमा अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण लगाए और पुरोहित वैदिक मंत्रों का उचारण करे. सभी कार्यों को पूर्ण करके पुन: अपने राज्य में लौट आए. इस प्रकार जो भी राजा इस विधि से विजय पूजा करता है वह सदैव अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है.

शमी पूजन अथवा अश्मंतक वृक्ष का पूजन

विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी पूजन एवं अश्मंतक के वृक्ष का पूजन करना चाहिए. इस पूजा के साथ एक कथा जुड़ी हुई है जो इस प्रकार है की माता पार्वती जी शमी वृक्ष की महत्ता के बारे में भगवान शिव जी से पूछती हैं तब शिव भगवान उनसे कहते हैं कि अज्ञात वास के समय अर्जुन ने अपने शस्त्रों को शमी के वृक्ष की कोटर या खोह में रख दिया था और राजा विराट के राज्य में वृहन्ना के वेश में रहने लगते हैं.
बाद में विराट के पुत्र की सहायता हेतु अर्जुन शमी के वृक्ष पर से अपने धनुष बाण उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं. इस प्रकार शमी वृक्ष ने अर्जुन के शस्त्रों की रक्षा की थी. इसके अतिरिक्त रामजी ने जब लंका पर चढाई की तब शमी वृक्ष ने उनसे कहा था की आपकी विजय अवश्य होगी, इसलिए विजयकाल में शमी वृक्ष की भी पूजा का विशेष विधान है. शमीवृक्ष यदि उपलब्ध न हो, तो अश्मंतक वृक्ष का पूजन करते हैं.
शमी वृक्ष पूजन करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को प्रदान किया जाता है. अपराजिता या विष्णु-क्रांता पौधे की भी पूजा की जाती है. यह विष्णु को प्रिय है तथा विजय प्रदान करने वाला है. इस परंपरा में विजय उल्लास पर्व की कामना के साथ समृद्धि की कामना करते हैं.

शस्त्रपूजन

दशहरा के दिन शस्त्रपूजन कर देवताओं की शक्ति का आवाहन किया जाता है, इस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिदिन उपयोग मे आने वाली वस्तुओं का पूजन करता है. यह त्योहार क्षत्रियों का मुख्य पर्व है इसमें वह अपराजिता देवी की पूजा करते हैं. यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला होता है.

दशहरा शुभ मुहूर्त 2011

दशहरा अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, यह एक अबूझ मुहूर्त है. दशहरे के दिन नए व्यापार या कार्य की शुरुआत करना अति शुभ होता है. इस दिन वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम, स्वर्ण, आभूषण आदि खरीदना शुभ होता है. दशहरे के दिन नीलकंठ भगवान के दर्शन करना अति शुभ माना जाता है.
दशहरा के दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं. दशहरा का पर्व समस्त पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, अहंकार, हिंसा आदि के त्याग की प्रेरणा प्रदान करता है.

दशहरे के दिन

दशहरा की शाम की संध्या का समय "विजय काल" कहलाता है ।
  • संध्या के समय बाहर सैर सपाटे की  बजाय इस समय १-२ घंटे जप-ध्यान करना चाहिए |
  • इस काल में श्री हनुमानजी का सुमिरन करते हुए इस मंत्र की एक माला जप करें :-
"पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होत तात तुम पाहि ॥"


  • दशहरा की संध्या को देवी का सुमिरन कर के इस मंत्र का जप किया जाता है :-
" अपराजितायै नमः "
दशहरा 2011 दशहरा 2011 Reviewed by Upendra Agarwal on अक्तूबर 04, 2011 Rating: 5

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